विक्रांत मैसी: छोटे पर्दे से राष्ट्रीय पहचान तक 
विक्रांत मैसी: छोटे पर्दे से राष्ट्रीय पहचान तक 

एक ऐसे देश में जहाँ ग्लैमर और स्टारडम अक्सर असली प्रतिभा पर भारी पड़ते हैं, विक्रांत मैसी की कहानी एक सच्ची और ताज़गीभरी सांस जैसी है। हाल ही में उन्हें फिल्म 12वीं फेल में उनके दिल को छू लेने वाले अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला है। यह पुरस्कार केवल उनका व्यक्तिगत जीत नहीं हैबल्कि ईमानदारी, संघर्ष और सच्चे समर्पण की जीत है।

एक साधारण शुरुआत

विक्रांत मैसी का जन्म 3 अप्रैल 1987 को मुंबई में एक ईसाई-सिख परिवार में हुआ था। फ़िल्म इंडस्ट्री से कोई नाता नहीं, पर बचपन से ही उनमें रचनात्मकता और संवेदनशीलता के बीज दिखने लगे थे। उन्होंने बैले और समकालीन नृत्य में प्रशिक्षण लिया। टेलीविज़न पर उन्होंने बालिका वधू, धरमवीर, और कुबूल है जैसे शोज़ से शुरुआत की। छोटे पर्दे पर नाम तो कमाया, लेकिन दिल में बड़े पर्दे का सपना हमेशा ज़िंदा रहा।

फिल्मों की ओर पहला कदम

2013 में विक्रांत ने लुटेरा फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू किया, जिसमें उन्होंने रणवीर सिंह और सोनाक्षी सिन्हा के साथ एक सहायक भूमिका निभाई। भले ही रोल छोटा था, लेकिन उनकी मौजूदगी नोटिस की गई। इसके बाद डेथ इन गंज, छपाक, कार्गो, और हसीन दिलरुबा जैसी फिल्मों में उनके काम को सराहा गया, लेकिन बड़ी पहचान अभी भी दूर थी।

ब्रेकथ्रू: 12वीं फेल

2023 में 12वीं फेल के साथ सब बदल गया। यह फिल्म लेखक अनुराग पाठक के उपन्यास पर आधारित थी, और इसका निर्देशन किया था विधु विनोद चोपड़ा ने। कहानी एक सच्चे आईपीएस ऑफिसर मनोज कुमार शर्मा की है, जिन्होंने गरीबी, असफलताओं और संघर्षों के बावजूद सिविल सेवा में सफलता हासिल की।

विक्रांत ने इस भूमिका में सिर्फ जान डाली, बल्कि उसे आत्मसात कर लिया। उनका अभिनय बेहद सच्चा, भावनात्मक और गहराई से भरा हुआ था। इस किरदार के लिए उन्होंने केवल अपना शारीरिक रूप बदला, बल्कि दिल्ली में असली UPSC छात्रों के बीच रहकर तैयारी की। उनकी परफॉर्मेंस दर्शकों और आलोचकोंदोनों के दिल को छू गई।

राष्ट्रीय मान्यता

2025 में विक्रांत मैसी को 12वीं फेल के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। इस खबर को फिल्म इंडस्ट्री और प्रशंसकों ने बेहद सराहा। अपने स्वीकृति भाषण में उन्होंने यह पुरस्कारहर उस अंडरडॉग को समर्पित किया जिसे कभी कहा गया कि तुम काफी नहीं हो।

ये जीत सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं हैये संकेत है उस बदलाव का जो भारतीय सिनेमा में रहा है: ग्लैमर से हटकर सच्ची कहानियों और गहराई से जुड़ी भूमिकाओं की ओर।

अभिनेता के पीछे का इंसान

बढ़ती प्रसिद्धि के बावजूद, विक्रांत ज़मीन से जुड़े हुए हैं। सामाजिक मुद्दों पर उनके स्पष्ट विचार और उनका सौम्य स्वभाव उन्हें युवाओं के लिए एक प्रेरणा बनाता है। वे मानते हैं कि उनके जीवन में मिली सफलता का श्रेय उनके परिवार और शिक्षकों की सीख को जाता है।

आगे क्या?

12वीं फेल ने विक्रांत को वह पहचान दिलाई जिसकी वे सालों से हकदार थे। आज वे ऐसे रास्ते पर हैं जहाँ गुणवत्ता, गहराई और ईमानदारी सबसे अहम हैना कि सिर्फ ग्लैमर और छवि।

निष्कर्ष

विक्रांत मैसी की कहानी इस बात का प्रमाण है कि धीरे और निरंतर चलने वाले लोग केवल जीत सकते हैं, बल्कि पूरी परिभाषा को ही बदल सकते हैं। उनकी यात्रा हर उस कलाकार के लिए उम्मीद की रौशनी है, जो अपनी कला को दिल से निभाना चाहता है।

Image Credit: Pinterest

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