हर साल 15 अगस्त को भारत स्वतंत्रता दिवस को अपार उत्साहऔर राष्ट्रीय गर्व के साथ मनाता है। यह वह दिन है जब 1947 मेंब्रिटिश साम्राज्य का अंत हुआ और भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र केरूप में उभरा, जो अपनी किस्मत खुद लिखने वाला था। इस दिनपूरे देश में तिरंगे से सजी गलियां, देशभक्ति गीतों से गूंजतीबस्तियां, और उन अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलिदी जाती है जिन्होंने इस दिन के लिए अपने प्राण न्यौछावर करदिए।
जहाँ एक ओर परेड, ध्वजारोहण और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँजमीनी स्तर पर जश्न का मुख्य हिस्सा होती हैं, वहीं भारतीयसिनेमा ने दशकों से देशभक्ति की भावना को जीवित रखा है।
फिल्में भारत के स्वतंत्रता संग्राम की छवि बन चुकी हैं, जहाँसाहस, विद्रोह और बलिदान की कहानियाँ न केवल ज्ञानवर्धकहोती हैं, बल्कि लोगों को प्रेरित भी करती हैं। स्वतंत्रता दिवसकेवल सड़कों पर नहीं मनाया जाता—यह बड़े पर्दे पर भी गूंजताहै।
भारतीय सिनेमा में देशभक्ति की शक्ति
भारतीय सिनेमा का देशभक्ति से गहरा नाता रहा है। स्वतंत्रतापूर्व काल में बनी फिल्में भी, जिनमें ब्रिटिश शासन कीआलोचना छिपे रूप में की जाती थी, आज़ादी की भावना कोजन-जन तक पहुंचाती थीं। आज के दौर की ब्लॉकबस्टरफिल्मों में भी सैनिकों और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान कोगौरवपूर्ण तरीके से दर्शाया जाता है।
फिल्में जैसे शहीद (1965) – जो भगत सिंह के जीवन परआधारित है, और गांधी (1982) – महात्मा गांधी की जीवनी,इतिहास को जीवंत बना देती हैं। ये फिल्में स्वतंत्रता दिवस परटीवी पर प्रसारित होती हैं और जश्न का हिस्सा बन जाती हैं।
समकालीन बॉलीवुड में स्वतंत्रता दिवस
आज के दौर में फिल्मों ने स्वतंत्रता के मायने को नए दृष्टिकोणसे दिखाना शुरू किया है। अब केवल औपनिवेशिक काल कीबात नहीं होती, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, पहचान और स्वतंत्रताकी कीमत जैसे विषय भी केंद्र में रहते हैं।
उदाहरण के लिए, रंग दे बसंती (2006) में युवा पीढ़ी कीकहानी को भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों की गाथा के साथजोड़ा गया है। यह फिल्म युवाओं में गहरी पैठ बना गई औरदेशभक्ति व सामाजिक बदलाव पर गंभीर बहस छेड़ दी।
इसी तरह, चक दे! इंडिया (2007) एक खेल के माध्यम सेदेशभक्ति को दर्शाती है, जहाँ भारतीय महिला हॉकी टीम कीसंघर्ष से सफलता तक की यात्रा दिखाई गई है। यह पारंपरिकदेशभक्ति फिल्म नहीं होते हुए भी, हर साल स्वतंत्रता दिवस केआसपास दर्शकों की पसंद बन जाती है।
युद्ध फिल्में और वीरता
स्वतंत्रता दिवस पर युद्ध आधारित फिल्में भी बेहद लोकप्रियहोती हैं, जो सेना के जवानों के शौर्य और समर्पण कोश्रद्धांजलि देती हैं। फिल्में जैसे बॉर्डर (1997), एल.ओ.सी. कारगिल (2003) और शेरशाह (2021) भारत के वीर सपूतोंकी सच्ची कहानियाँ कहती हैं।
शेरशाह, जो कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन पर आधारित है,रिलीज़ के साथ ही एक संस्कृतिक घटना बन गई थी, खासकरस्वतंत्रता दिवस के आसपास। उनका प्रसिद्ध संवाद – "ये दिलमांगे मोर!" आज भी युवा जोश और समर्पण का प्रतीक है।
स्वतंत्रता दिवस: एक सिनेमाई पृष्ठभूमि
कई फिल्म निर्माता स्वतंत्रता दिवस को एक पृष्ठभूमि याकथानक के मोड़ के रूप में भी उपयोग करते हैं। स्वदेश(2004), जिसमें शाहरुख़ खान एक प्रवासी भारतीय की भूमिकामें हैं, जो भारत लौटकर ग्रामीण विकास में योगदान देता है—यह फिल्म कर्तव्य, आत्म-खोज और राष्ट्रीय विकास जैसेमूल्यों पर केंद्रित है।
इसी तरह, हॉलीडे: अ सोल्जर इज़ नेवर ऑफ ड्यूटी (2014)में एक सैनिक छुट्टी पर होने के बावजूद आतंकवादी साजिश कोनाकाम करता है। फिल्म यह संदेश देती है कि देशभक्ति केवलत्योहारों तक सीमित नहीं, बल्कि यह हर दिन निभाई जानेवाली जिम्मेदारी है।
विश्व सिनेमा में स्वतंत्रता दिवस
स्वतंत्रता दिवस केवल भारत की ही नहीं, विश्व सिनेमा की भीप्रेरणा बन चुका है। हॉलीवुड फिल्म Independence Day (1996) एक साइंस-फिक्शन है, लेकिन इसमें भी एकजुटता, आत्म-रक्षा और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष जैसे भावनात्मकपहलू दिखाई देते हैं।
ऐसी फिल्में, भले ही कल्पनाओं पर आधारित हों, लेकिन मनुष्यकी मूल भावना – स्वतंत्रता पाने, अत्याचार का विरोध करनेऔर अपने देश के लिए लड़ने – को दर्शाती हैं। इसी वजह से,देशभक्ति से जुड़ी फिल्में कभी पुरानी नहीं पड़तीं।
सिनेमा: एक सांस्कृतिक सेतु
स्वतंत्रता दिवस के दिन भारतीय परिवार टीवी या ओटीटी परबैठकर ऐसी फिल्में देखते हैं। ये पीढ़ियों को जोड़ती हैं, औरबलिदान व संघर्ष की कहानियों को फिर से जीवंत करती हैं।भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, सिनेमा एक सांस्कृतिक सेतुकी तरह काम करता है, जो सभी को राष्ट्र की एकता और गर्वका अहसास कराता है।
टीवी चैनल्स विशेष कार्यक्रमों के तहत देशभक्ति फिल्मों कीश्रृंखला दिखाते हैं, जबकि ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स भी क्लासिकऔर नई फिल्मों को प्रमोट करते हैं।
परदे पर और परे स्वतंत्रता का जश्न
स्वतंत्रता दिवस केवल एक तारीख नहीं है, यह भारत कीआत्मा का उत्सव है—इसके संघर्ष, इसकी जीत और इसकेअविचल आत्मबल का प्रतीक है। फिल्में सिर्फ मनोरंजन नहींदेतीं, बल्कि याद दिलाती हैं कि हम कौन हैं और हमें किनसंघर्षों से यह आज़ादी मिली है।
जब हम हर साल तिरंगा फहराते हैं और राष्ट्रगान गाते हैं, तोकुछ क्षण यह सोचने के लिए निकालना चाहिए कि सिनेमा नेहमारी स्मृतियों में आज़ादी को कैसे जीवंत रखा है। चाहे आपलगान, उरी, या द लीजेंड ऑफ भगत सिंह देखें—आप सिर्फफिल्म नहीं देख रहे, आप स्वतंत्रता का उत्सव मना रहे हैं।
इसलिए इस स्वतंत्रता दिवस, झंडारोहण और आतिशबाज़ी केसाथ एक अच्छी देशभक्ति फिल्म जरूर देखें। क्योंकि कईबार, सबसे बड़ी क्रांतियाँ युद्ध के मैदानों में नहीं, बल्कि दर्शकोंके दिलों में, यादों में और गर्व में जन्म लेती हैं।
हिंदी सिनेमा की चकाचौंध के पीछे, खासकर 1970 और 1980 के दशक में, एक खामोश क्रांति चल रही थी। मुख्यधारा की फिल्मों की चमक-दमक से दूर, यथार्थ और मानवीय अनुभवों पर आधारित एक नई पीढ़ी की फिल्में उभर रही थीं। इस आंदोलन से जुड़ी कई प्रतिभाओं के बीच, दीप्ति नवल और फारूक शेख की जोड़ी कुछ अलग ही थी।
फिल्म इंडस्ट्री में जहां उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं को किनारे कर दिया जाता है, जहां अक्सर रूप रंग को प्रतिभा से ऊपर रखा जाता है, वहां नीना गुप्ता ने मानो पूरी व्यवस्था को पलट कर रख दिया है। एक समय पर उन्हें स्टीरियोटाइप किरदारों में बांध दिया गया था, लेकिन आज वे मिड-लाइफ क्रांति का चेहरा बन चुकी हैं। उन्होंने सिर्फ फिल्मों में वापसी नहीं की — बल्कि खुद को नया रूप दिया और उम्रदराज महिलाओं की छवि को फिर से परिभाषित किया। उनकी कहानी सिर्फ फिल्मों की नहीं है; ये साहसिक फैसलों, आत्मबल और उस आंतरिक विश्वास की कहानी है, जो एक ऐसी महिला के अंदर था जिसने दुनिया से मुंह मोड़ने के बावजूद खुद पर विश्वास नहीं खोया।
भारतीय सिनेमा के समृद्ध कैनवस में यदि कोई नाम सबसे उज्जवल रूप में चमकता है, तो वह है यश चोपड़ा। "रोमांस के बादशाह" के रूप में मशहूर यश चोपड़ा ने अपनी कहानी कहने की अनोखी शैली, खूबसूरत दृश्यों, मधुर संगीत और भावनात्मक गहराई से बॉलीवुड को एक नया रूप दिया। उनके पांच दशकों से भी लंबे करियर ने हिंदी सिनेमा की दिशा ही बदल दी और दुनिया को प्रेम की एक नई सिनेमाई भाषा सिखाई।
आज, 26 सितंबर को हँसी की दुनिया की रानी, हमेशा मुस्कुराती और हँसी बाँटती अर्चना पूरण सिंह अपना 63वां जन्मदिन मना रही हैं। चार दशकों से अधिक लंबे अपने करियर में उन्होंने भारतीय टेलीविज़न और सिनेमा को अपनी ऊर्जा, हास्य और अनोखी आवाज़ से रोशन किया है। उनकी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग और गर्मजोशी भरे स्वभाव ने उन्हें एक ऐसे सितारे के रूप में स्थापित किया है, जो शोबिज़ की चमक-दमक में भी अपनी सच्चाई और मौलिकता को नहीं भूलीं।
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