प्रसून जोशी आधुनिक भारत की सबसे बहुमुखी रचनात्मक आवाज़ों में से एक हैं — एक कवि, गीतकार, पटकथा लेखक, संचार रणनीतिकार और सांस्कृतिक विचारक जिनका काम विज्ञापन, फिल्म, साहित्य और सार्वजनिक सोच के कई क्षेत्रों को छूता है। जो उन्हें अलग बनाता है, वह उनकी कृतियों की संख्या या विविधता नहीं, बल्कि उनके कार्यों की सामाजिक धार, संवेदनशीलता और गहराई है।
प्रारंभिक जीवन और formative वर्ष
प्रसून जोशी का जन्म 16 सितंबर 1971 को अल्मोड़ा में हुआ था, जो तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा था (अब उत्तराखंड)। उनका बचपन काव्यात्मक संवेदनशीलता, शैक्षणिक अनुशासन और संगीत के प्रभावों के मिश्रण से गढ़ा गया था।
उनके पिता डी. के. जोशी राज्य शिक्षा सेवा में थे, और उनकी माता सुषमा जोशी राजनीतिक विज्ञान की लेक्चरर थीं, जो लगभग चार दशकों तक ऑल इंडिया रेडियो पर शास्त्रीय संगीत भी गाती रहीं। उनका घर रोज़ाना साहित्य, संगीत और विचारों का केंद्र था।
उन्होंने 17 साल की उम्र में अपनी पहली पुस्तक मैं और वह प्रकाशित की — एक ऐसी पुस्तक जिसमें गहरी आत्म-चिंतनशीलता और अपनी आवाज़ की खोज झलकती है। इसके बाद दर्द सो रहा है, समाधान, और गीत-संग्रह तथा निबंध जैसे सनशाइन लेन्स और थिंकिंग अलाउड आए।
शैक्षणिक रूप से, जोशी बीएससी और फिजिक्स में पोस्टग्रेजुएट हैं और उन्होंने गाजियाबाद के इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी से एमबीए भी किया है। विज्ञान और प्रबंधन का यह अनूठा मिश्रण उन्हें अपनी लेखनी में संरचना और भावना दोनों को देखने की क्षमता देता है।
इन प्रारंभिक प्रभावों — संगीत, कविता और बौद्धिक कठोरता — ने उस करियर की नींव रखी जो कला और उद्देश्य को एक साथ लाएगा।
विज्ञापन और कॉर्पोरेट क्रिएटिविटी में सफर
कई लोग जोशी को उनके गीत और फिल्म के काम के लिए जानते हैं, लेकिन उनकी जड़ें विज्ञापन में गहरी और महत्वपूर्ण हैं।
उन्होंने ओगिल्वी एंड मदर, दिल्ली से शुरुआत की, फिर मैककैन-एरिकसन/मैककैन वर्ल्डग्रुप में रचनात्मक नेतृत्व की भूमिकाओं में उन्नति की। 2000 के दशक के मध्य तक, वे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय जिम्मेदारियों पर थे।
उनका काम केवल ब्रांडिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि भावनात्मक और सामाजिक कनेक्शन बनाने के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने कई प्रमुख भारतीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों (कोका-कोला, मास्टरकार्ड, नेस्ले, रेकिट) और कई सामाजिक महत्व के कारणों (पोलियो उन्मूलन, कुपोषण, स्वच्छता / स्वच्छ भारत अभियान) के लिए यादगार कैंपेन बनाए हैं।
उनके नेतृत्व में, मैककैन वर्ल्डग्रुप इंडिया ने हमेशा भारत और एशिया पैसिफिक के शीर्ष क्रिएटिव एजेंसियों में स्थान बनाया है और कैनस लायंस, द वन शो, क्लियो सहित कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं।
उनकी फिल्म और गीतकार पहचान
विज्ञापन के साथ-साथ जोशी ने भारतीय सिनेमा में भी एक मजबूत पेशेवर करियर बनाया है, खासकर गीत लेखन, पटकथा/संवाद, और कहानी कहने में।
उनकी फिल्मों में गीतकार के रूप में एंट्री 2001 में फिल्म लज्जा (निर्देशक: राजकुमार संतोषी) से हुई। समय के साथ, वे ऐसे गीतकार के रूप में पहचाने गए जिनके गीत सिर्फ काव्यात्मक सजावट नहीं बल्कि भावना, विषय और कथानक के लिए अनिवार्य होते हैं।
उनकी कुछ बड़ी सफलताएं हैं: रंग दे बसंती, तारे ज़मीन पर, भाग मिल्खा भाग, फ़ना, दिल्ली-6, ब्लैक, नीरजा। इनमें ऐसे गीत और संवाद हैं जो सार्वभौमिक रूप से लोगों के दिलों को छू गए।
पुरस्कार: उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार कई बार मिला है (2007, 2008, फिर 2014)। उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला है (2007 में तारे ज़मीन पर के लिए; 2013 में चित्तागोंग के लिए)।
सार्वजनिक भूमिका, सम्मान और प्रभाव
रचनात्मक कार्य के अलावा, प्रसून जोशी ने कई पदों पर काम किया है और ऐसे पुरस्कार भी पाए हैं जो उनके प्रभाव को दर्शाते हैं।
वे अगस्त 2017 में सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) के अध्यक्ष नियुक्त हुए। यह पद कला, नियम, समाज और अभिव्यक्ति को जोड़ता है।
पुरस्कार: उन्हें 2015 में कला, साहित्य, विज्ञापन में उनके प्रयासों के लिए पद्म श्री (भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान) से सम्मानित किया गया।
उनकी एजेंसी को उनके नेतृत्व में विज्ञापन में दक्षता, सामाजिक अभियान, और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शीर्ष सम्मान मिले हैं।
उन्होंने अपने गृह राज्य उत्तराखंड से भी सम्मान प्राप्त किया है, जैसे उत्तराखंड गौरव सम्मान।
शैली, दर्शन और उनकी खासियत
प्रसून जोशी की सबसे खास बातें क्या हैं जो हर कोई पसंद करता है और अर्थपूर्ण पाता है? कुछ मुख्य गुण:
चुनौतियां और विरासत
सभी सार्वजनिक हस्तियों की तरह जो रचनात्मक सीमाओं का परीक्षण करते हैं, जोशी को संतुलन बनाए रखना पड़ा:
उनकी विरासत अभी भी बन रही है, लेकिन वह पहले ही काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने हिंदी फिल्म गीतों के मानदंड को उठाया है — अधिक चिंतनशील, परतदार। और विज्ञापन में, उन्होंने ब्रांड्स को लोगों से केवल उत्पाद बेचने तक सीमित नहीं रहने, बल्कि आदर्शों और मूल्यों से संवाद करने का तरीका फिर से परिभाषित किया है।
अंतिम विचार
कई मायनों में, प्रसून जोशी नए जमाने के भारतीय रचनाकार हैं जो खुद को किसी एक क्षेत्र में सीमित नहीं रखते। वे ऐसे शब्द बनाते हैं जो दिलों में बस जाते हैं, ऐसे विचार जो चुनौती देते हैं, ऐसी कला जो लोगों को जोड़ती है।
जो कोई भी लेखक, विज्ञापनकर्ता, फिल्म निर्माता बनना चाहता है या अच्छी संस्कृति का प्रेमी है, जोशी प्रेरणा हैं: कि कोई गहराई और पहुँच, जनसामान्य और विवेक दोनों हासिल कर सकता है।
अगर हम उनकी कोई गीत सुनते हैं, कोई कविता पढ़ते हैं, उनका बनाया कोई विज्ञापन देखते हैं, या उनकी लिरिक्स वाली कोई फिल्म देखते हैं, तो हम वास्तव में सुन रहे होते हैं एक ऐसे व्यक्ति को जो इंसान होने का मतलब समझता है — उसकी सारी जटिलता, विरोधाभास, और सुंदरता के साथ। और शायद यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है।
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