नीता मुकेश अंबानी सांस्कृतिक केंद्र (NMACC) सिर्फ एक इमारत नहीं है — यह एक आंदोलन है जो भारत की सांस्कृतिक और कलात्मक पहचान को नया जीवन दे रहा है। मुंबई में स्थित यह विश्वस्तरीय केंद्र भारत की समृद्ध विरासत का उत्सव मनाने के साथ-साथ आधुनिक और वैश्विक रचनात्मकता को भी अपनाता है।
एनएमएसीसी में भव्य थिएटर प्रस्तुतियाँ, शास्त्रीय नृत्य, समकालीन कला प्रदर्शनियाँ और अंतरराष्ट्रीय फैशन शो जैसी गतिविधियाँ एक ही मंच पर देखने को मिलती हैं। यह मंच न केवल प्रतिष्ठित कलाकारों को, बल्कि उभरते हुए रचनाकारों को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं के साथ प्रस्तुत करता है।
इस केंद्र की सबसे बड़ी खासियत इसकी समावेशिता है। यह पारंपरिक और आधुनिक, ग्रामीण और शहरी, अनुभवी और नए कलाकारों को एक साथ जोड़ता है। यहाँ परंपरा और नवाचार, शाश्वत और प्रयोगात्मक का सुंदर संगम देखने को मिलता है।
एनएमएसीसी ने भारतीय संस्कृति को वैश्विक मंच पर ले जाकर यह साबित कर दिया है कि कला केवल संजोने के लिए नहीं होती — उसे जीने और मनाने के लिए होती है। अल्प समय में ही यह केंद्र कला और संस्कृति के प्रति एक नई जागरूकता की लहर लेकर आया है।
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हिंदी सिनेमा की चकाचौंध के पीछे, खासकर 1970 और 1980 के दशक में, एक खामोश क्रांति चल रही थी। मुख्यधारा की फिल्मों की चमक-दमक से दूर, यथार्थ और मानवीय अनुभवों पर आधारित एक नई पीढ़ी की फिल्में उभर रही थीं। इस आंदोलन से जुड़ी कई प्रतिभाओं के बीच, दीप्ति नवल और फारूक शेख की जोड़ी कुछ अलग ही थी।
फिल्म इंडस्ट्री में जहां उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं को किनारे कर दिया जाता है, जहां अक्सर रूप रंग को प्रतिभा से ऊपर रखा जाता है, वहां नीना गुप्ता ने मानो पूरी व्यवस्था को पलट कर रख दिया है। एक समय पर उन्हें स्टीरियोटाइप किरदारों में बांध दिया गया था, लेकिन आज वे मिड-लाइफ क्रांति का चेहरा बन चुकी हैं। उन्होंने सिर्फ फिल्मों में वापसी नहीं की — बल्कि खुद को नया रूप दिया और उम्रदराज महिलाओं की छवि को फिर से परिभाषित किया। उनकी कहानी सिर्फ फिल्मों की नहीं है; ये साहसिक फैसलों, आत्मबल और उस आंतरिक विश्वास की कहानी है, जो एक ऐसी महिला के अंदर था जिसने दुनिया से मुंह मोड़ने के बावजूद खुद पर विश्वास नहीं खोया।
भारतीय सिनेमा के समृद्ध कैनवस में यदि कोई नाम सबसे उज्जवल रूप में चमकता है, तो वह है यश चोपड़ा। "रोमांस के बादशाह" के रूप में मशहूर यश चोपड़ा ने अपनी कहानी कहने की अनोखी शैली, खूबसूरत दृश्यों, मधुर संगीत और भावनात्मक गहराई से बॉलीवुड को एक नया रूप दिया। उनके पांच दशकों से भी लंबे करियर ने हिंदी सिनेमा की दिशा ही बदल दी और दुनिया को प्रेम की एक नई सिनेमाई भाषा सिखाई।
आज, 26 सितंबर को हँसी की दुनिया की रानी, हमेशा मुस्कुराती और हँसी बाँटती अर्चना पूरण सिंह अपना 63वां जन्मदिन मना रही हैं। चार दशकों से अधिक लंबे अपने करियर में उन्होंने भारतीय टेलीविज़न और सिनेमा को अपनी ऊर्जा, हास्य और अनोखी आवाज़ से रोशन किया है। उनकी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग और गर्मजोशी भरे स्वभाव ने उन्हें एक ऐसे सितारे के रूप में स्थापित किया है, जो शोबिज़ की चमक-दमक में भी अपनी सच्चाई और मौलिकता को नहीं भूलीं।
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