छाया कदम का सफर बॉलीवुड में संघर्ष, समर्पण और मेहनत की मिसाल है। रंगमंच से शुरू हुई उनकी अभिनय यात्रा ने उन्हें टेलीविजन और फिल्मों तक पहुंचाया, जहाँ उन्होंने हर किरदार को गहराई और सच्चाई से निभाया।
छाया ने अपने करियर की शुरुआत मराठी थिएटर से की, जहाँ उन्होंने अभिनय की बुनियादी समझ और संवेदनशीलता को निखारा। इसके बाद उन्होंने गली बॉय, पिकू जैसी हिंदी फिल्मों में छोटे लेकिन प्रभावशाली किरदार निभाकर दर्शकों का ध्यान खींचा। उनकी खासियत रही है — साधारण से किरदारों में भी जान डाल देना।
लापता लेडीज़ में छाया कदम ने मंजू माई का किरदार निभाया, जो एक सुलझी हुई और समझदार ग्रामीण महिला है। उनका अभिनय इतना प्रभावशाली था कि वह फिल्म की आत्मा बन गईं। मंजू माई के रूप में छाया ने एक ऐसा किरदार पेश किया जो दर्शकों के दिल में उतर गया — उनकी बातों में अनुभव की गहराई थी, और व्यवहार में ममता की गर्माहट।
छाया कदम ने इस किरदार को जिस सहजता और भावनात्मक सच्चाई से निभाया, वह फिल्म की सबसे बड़ी ताकतों में से एक रहा। लापता लेडीज़ में उनका योगदान यह साबित करता है कि सहायक किरदार भी कहानी को गहराई दे सकते हैं और दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ सकते हैं।
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हिंदी सिनेमा की चकाचौंध के पीछे, खासकर 1970 और 1980 के दशक में, एक खामोश क्रांति चल रही थी। मुख्यधारा की फिल्मों की चमक-दमक से दूर, यथार्थ और मानवीय अनुभवों पर आधारित एक नई पीढ़ी की फिल्में उभर रही थीं। इस आंदोलन से जुड़ी कई प्रतिभाओं के बीच, दीप्ति नवल और फारूक शेख की जोड़ी कुछ अलग ही थी।
फिल्म इंडस्ट्री में जहां उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं को किनारे कर दिया जाता है, जहां अक्सर रूप रंग को प्रतिभा से ऊपर रखा जाता है, वहां नीना गुप्ता ने मानो पूरी व्यवस्था को पलट कर रख दिया है। एक समय पर उन्हें स्टीरियोटाइप किरदारों में बांध दिया गया था, लेकिन आज वे मिड-लाइफ क्रांति का चेहरा बन चुकी हैं। उन्होंने सिर्फ फिल्मों में वापसी नहीं की — बल्कि खुद को नया रूप दिया और उम्रदराज महिलाओं की छवि को फिर से परिभाषित किया। उनकी कहानी सिर्फ फिल्मों की नहीं है; ये साहसिक फैसलों, आत्मबल और उस आंतरिक विश्वास की कहानी है, जो एक ऐसी महिला के अंदर था जिसने दुनिया से मुंह मोड़ने के बावजूद खुद पर विश्वास नहीं खोया।
भारतीय सिनेमा के समृद्ध कैनवस में यदि कोई नाम सबसे उज्जवल रूप में चमकता है, तो वह है यश चोपड़ा। "रोमांस के बादशाह" के रूप में मशहूर यश चोपड़ा ने अपनी कहानी कहने की अनोखी शैली, खूबसूरत दृश्यों, मधुर संगीत और भावनात्मक गहराई से बॉलीवुड को एक नया रूप दिया। उनके पांच दशकों से भी लंबे करियर ने हिंदी सिनेमा की दिशा ही बदल दी और दुनिया को प्रेम की एक नई सिनेमाई भाषा सिखाई।
आज, 26 सितंबर को हँसी की दुनिया की रानी, हमेशा मुस्कुराती और हँसी बाँटती अर्चना पूरण सिंह अपना 63वां जन्मदिन मना रही हैं। चार दशकों से अधिक लंबे अपने करियर में उन्होंने भारतीय टेलीविज़न और सिनेमा को अपनी ऊर्जा, हास्य और अनोखी आवाज़ से रोशन किया है। उनकी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग और गर्मजोशी भरे स्वभाव ने उन्हें एक ऐसे सितारे के रूप में स्थापित किया है, जो शोबिज़ की चमक-दमक में भी अपनी सच्चाई और मौलिकता को नहीं भूलीं।
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